देश में अपराध के सबसे ऊंचे ग्राफ वाले राज्य उत्तर प्रदेश की पुलिस में 60 प्रतिशत पद रिक्त हैं। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 25 फीसदी है। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड स्टडी की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र में 31 प्रतिशत, बिहार में 28 प्रतिशत और गुजरात में 27 प्रतिशत, तमिलनाडु में 16 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 11 प्रतिशत, राजस्थान व कर्नाटक में 11 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 10 प्रतिशत पुलिस बलों के पद रिक्त हैं। गृह मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को सचेत करने वाली बताया है। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के खिलाफ हुए प्रताड़ना और हत्या जैसे अपराधों के मामलों में जबर्दस्त बढ़ोतरी के बावजूद राज्य में 1 जनवरी, 2011 तक पुलिस बल के स्वीकृत तीन लाख 68 हजार 260 में सिर्फ एक लाख 49 हजार 68 पदों पर ही तैनाती हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर कुल स्वीकृत 20 लाख 64 हजार 370 पदों में पांच लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं, जो कुल पदों का 25 प्रतिशत है। वर्ष 2010 के दौरान उत्तर प्रदेश में 4,401 हत्याओं समेत कुल 22 लाख 87 हजार 799 आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जो भारत के किसी भी राज्य के मुकाबले सबसे ज्यादा हैं। राज्य में अनुसूचित जातियों के खिलाफ भी सबसे अधिक 6,272 अपराध हुए, जो पूरे देश के 32,712 मामलों का 19.2 प्रतिशत है। पिछले सप्ताह आंतरिक सुरक्षा पर हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड स्टडी के इस अध्ययन को सचेत हो जाने का संकेत करार दिया। उन्होंने राज्यों से अनुरोध करते हुए कहा कि आने वाली चुनौतियों का सामना करने की क्षमता बढ़ाने के लिए तुरंत आवश्यक कदम उठाए जाएं। इसी बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि कोई भी ढांचा या प्रणाली उसको चलाने वाले लोगों से बेहतर नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि हमें पुलिस बल में संख्या बढ़ाने के साथ ही गुणवत्ता बढ़ाने की भी जरूरत है। पर्याप्त संख्या में पुलिस बल नहीं होने से राज्य सरकारों को कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। किसी भी महत्वपूर्ण समस्या से निपटने के लिए केंद्रीय बलों पर निर्भर होना पड़ता है। इसके अलावा प्रतिदिन की समस्याओं से निजात पाने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस खुलासे के बाद हो सकता है कि कोई उचित कदम उठाया जाए।
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