लोकमित्र हाल के सालों में क्या कभी आपने भारतीय शासकों को इस कदर
छटपटाते देखा है? क्या उन्हें इतना असहाय, लाचार और हताश होते हुए देखा है? आपातकाल का नहीं पता, लेकिन आपातकाल के दौरान राजनेताओं ने
कभी जिक्र नहीं किया कि जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी या तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट को इतना हताश और चिड़चिड़ा बनाया हो, जैसे अरविंद केजरीवाल ने अपने एक के बाद एक खुलासों से बना दिया है। अब तो केजरीवाल ने इंडिया
अंगेस्ट करप्शन के बैनर तले केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के गृह जिले फर्रुखाबाद में आगामी एक नवंबर को सभा करने का ऐलान कर दिया है। कुछ शर्तो
के साथ उन्हें प्रशासन से मंजूरी भी मिल गई है। जाहिर है, इससे
सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद की नींदें उड़ गई होंगी। पहले लगता था कि कांग्रेस में सिर्फ दिग्विजय सिंह ही ऐसे
राजनेता हैं, जो प्रतिक्रिया करते हुए अपना आपा खो बैठते हैं और शब्दों के चयन
को लेकर बेलगाम हो जाते
हैं। अब जिस तरह से अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेसियों को तिलमिलाया है तो लगता है कि दिग्विजय सिंह इस परंपरा के अकेले
वाहक नहीं है। सलमान
खुर्शीद की अभी एक पखवाड़े पहले तक पढ़े-लिखे टाई बांधने वाले सौम्य राजनेता की छवि थी, जो कुर्ता से ज्यादा काले कोट में तस्वीरों में नजर आते रहे हैं। लेकिन पहले इंडिया टुडे
समूह द्वारा उन्हें बेनकाब किया जाना और उसके बाद अरविंद केजरीवाल द्वारा परत दर परत उन्हें जिस तरह से नंगा किया गया है, लगता है वह अपनी तमाम सौम्यता, शिष्टता
फर्रुखाबाद रख छोड़ आए हैं और
वहां से ठेठ फर्रुखाबादी अंदाज पहन आए हैं। तभी तो केजरीवाल की ओर इशारा करते हुए अभद्र-अशिष्ट भाषा में कहते हैं कि वह
फर्रुखाबाद आकर तो दिखाए,
यहां से वापस नहीं जा पाएगा। दर्ज करिए, यह दुनिया के
सबसे बड़े लोकतंत्र के उन जिम्मेदार लोगों की भाषा है, जिन्हें इस
लोकतंत्र का वाहक समझा जाता है। दर्ज करिए, यह उस सार्वजनिक
राजनेता की भाषा है, जिसे जनता का सेवक कहा जाता है। दर्ज
करिए, यह उस जिम्मेदार सांसद-मंत्री की भाषा है,
शिष्ट रहना जिसकी जिम्मेदारी है। क्या पहले कभी किसी राजनेता ने इस तरह से आपा खोया है?
याद नहीं आता। सच तो यह है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड ही नहीं है। यह छटपटाहट, यह तिलमिलाहट सलमान खुर्शीद जैसों का इस तरह आपा खोना ये सब केजरी बम का नतीजा
है। राजनीति के
पर्दानशीं चेहरे अरविंद
केजरीवाल भविष्य में भारतीय राजनीति में अपनी मुकम्मल जगह बना पाते हैं या नहीं, यह भविष्य बताएगा। केजरीवाल राजनीति कर रहे हैं या भारत के जनमानस की भावना को व्यक्त कर रहे हैं। यह
उनका दीर्घकालिक स्टैंड बताएगा। लेकिन आज की तारीख में केजरीवाल ने तहलका मचा दिया है। अरविंद केजरीवाल ने दिखा दिया है कि जिसे भारतीय राजनीति की दाल
कहते हैं, उसमें कुछ काला नहीं है, वह दाल ही पूरी
काली है। अरविंद केजरीवाल ने साबित कर दिया है कि अगर आपमें माद्दा हो, अगर आपमें
नैतिक आत्मबल हो तो आप भारत की राजनीति के तमाम खूबसूरत चेहरों से पर्दा उठा सकते हैं। भले ये खुरदुरे चेहरे
कितने ही डरावने लगें। केजरीवाल भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय
बन रहे हैं। इसलिए नहीं कि उन्होंने कुछ घोटालों और घोटालेबाजों को बेनकाब करने का दुस्साहस किया है,
बल्कि इसलिए कि उन्होंने भारतीय जनमानस को विरोध का एक
तेवर दिया है। केजरीवाल इसलिए
भारतीय राजनीति के इतिहास में हमेशा दर्ज रहेंगे कि उन्होंने दिखाया कि जब यह समझा जाने लगा था कि राजनेताओं को
चुनौती नहीं दी जा सकती और
राजसत्ता की तरफ अंगुली नहीं उठाई जा सकती, तब उन्होंने राजसत्ता
को आंखें तरेरी और उन्हें उनकी जमीन पर दिखाया। यह भारतीय राजनीति का एक अहम अध्याय और एक नया मोड़ है। विरोध
पहले भी होते रहे हैं। बेनकाब राजनेता पहले भी किए जाते रहे हैं, लेकिन भारतीय राजनीति के इतिहास पर एक नजर दौड़ाकर देखें तो पता चल जाएगा कि राजनेताओं का विरोध
आमतौर पर राजनेता ही करते
हैं। राजनेताओं के चेहरे से नकाब उठाने का काम राजनेता ही करते रहे हैं। इंदिरा गांधी को चुनौती राजनारायण
ने दी थी, जो खांटी हिंदुस्तानी समाजवाद के स्टालवार्ट थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू को चुनौती
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने दी थी,
जो उसी कांग्रेस की मुखर संतान थे, जिसके खुद नेहरू। इसलिए अब से पहले के तीखे विरोध या चुनौतियां इतना मायने नहीं रखती रहीं। केजरीवाल ने भारतीय जनमानस को एक नया संबल
दिया है। केजरीवाल ने आम भारतीयों को यह भरोसा दिया है कि बड़े से बड़े, ताकतवर से ताकतवर राजनेता को भी पटखनी दी जा सकती है। बशर्ते, आप में नैतिकता और ईमानदारी का बल हो। जब भारतीय राजनेताओं को दूसरे राजनेता चुनौती देते थे तो इससे
आम जनता को बल नहीं मिलता था,
बल्कि इससे अप्रत्यक्ष रूप से एक किस्म की हताशा ही हाथ लगती थी; क्योंकि इस सच से यह संदेश जाता था कि राजनेताओं को चुनौती देने के लिए एक राजनेता चाहिए। यह लगभग उसी तरह
के सिद्धांत की स्थापना थी, जिसमें माना जाता
है कि राजा का मुकाबला राजा ही कर सकता है। शायद यही एक बड़ा कारण है कि आमतौर पर हिंदुस्तान में एक
गुंडा-माफिया को दूसरा
गुंडा- माफिया ही चुनौती देता है। इसलिए भारतीय राजनीति में चेहरों का तो परिवर्तन होता है, चरित्र का नहीं। अरविंद केजरीवाल ने यह हिम्मत, यह सोच दी है कि माफिया को आम आदमी भी चुनौती दे सकता है। हो सकता है कि भविष्य में इससे भारतीय राजनीति में आमूलचूल
परिवर्तन देखने को मिले। अगर यह विश्वास बना रहा, अरविंद केजरीवाल
की धारा मजबूत हुई तो भविष्य में आम आदमी और ईमानदार लोग भी बड़े-बड़े आततायियों से टकराने की, उन्हें चुनौती देने की हिम्मत कर सकेंगे। सच की सुई का खौफ केजरीवाल ने यह दिखा दिया है कि जिन्हें सबसे ताकतवर समझा जाता है,
अगर उन्हें भी आप सच की सुई चुभोयें तो वे इस कदर उछलते हैं कि मानो वे बड़े मामूली से जीव हों। सच का वार बहुत तीखा,
बहुत गहरा होता है। झूठ उसके सामने चाहे जितना ताकतवर दिखे, टिकता नहीं है। इसीलिए भारतीय राजनीति चाहे वह सत्तापक्ष हो या विपक्ष, इन दिनों केजरी बम से तिलमिलाई हुई है। भारतीय राजनीति पहली बार इस कदर फूहड़, घिनौनी और भयावह दिख रही है, जितनी पहले कल्पना में भी नहीं दिखती थी। अगर
अरविंद केजरीवाल नहीं भी रहते, भारतीय राजनीति
के पारंपरिक षड्यंत्रपूर्ण हादसे उनका सफाया भी कर देते तो अब यह धारा, ताकत हमेशा के
लिए खत्म होने वाली नहीं है। कोई दूसरा अरविंद केजरीवाल आएगा और भारतीय राजनीति को परिवर्तन के लिए मजबूर
करेगा। वास्तव में केजरी बमों
के ध्वंस से इसी नवसृजन की उम्मीद हर हिंदुस्तानी करता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
Dainik Jagran National Edtion 30-10-2012 राजनीति Pej
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