कांग्रेस को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का साथ अब भले सुखद लगे लेकिन वह एक सचाई भूल गई है। नीतीश राजनीति में पिता के अपमान का जख्म लेकर उतरे हैं। कांग्रेस ने उनके पिता के साथ उचित व्यवहार नहीं किया था। पुस्तक नीतीश कुमार एंड राइज ऑफ बिहार में यह दावा किया गया है। बचपन के दोस्त अरुण सिन्हा की लिखी इस पुस्तक का विमोचन नीतीश ने ही किया है। इसमें कहा गया है कि कांग्रेस ने नीतीश के पिता रामलखन सिंह को 1952 व 1957 के चुनाव में बख्तियारपुर से टिकट देने से इन्कार कर दिया था। इससे आहत स्वतंत्रता सेनानी रहे उनके पिता ने कांग्रेस छोड़ दी थी। वह रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी के टिकट पर 1957 में चुनाव लड़े थे। वह खुद तो नहीं जीत पाए थे पर वोटों का बंटवारा कराकर कांग्रेस को हराने में सफल रहे थे। रामलखन पटना के बाहरी इलाके बख्तियारपुर में लोगों का आयुर्वेदिक इलाज करते थे। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वान पर वह डॉक्टरी बंद कर आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस का सक्रिय सदस्य होने के बावजूद रामलखन का नाम 1951-52 के चुनाव में प्रत्याशियों की सूची से हटा दिया गया। उस समय बिहार में कांग्रेस के श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह के दोनों गुटों में से वह किसी की सूची में जगह नहीं बना पाए। ऐसा इस वजह से कि वह पिछड़ी जाति का प्रतिनिधित्व करते थे। दोनों गुटों में हुए समझौते के तहत भूमिहार जाति की महिला प्रत्याशी तारकेश्वरी सिन्हा को पटना पूर्वी लोस क्षेत्र से कांगे्रस का टिकट दिया गया। स्व. प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की बहन सुंदरी देवी को बख्तियारपुर विधानसभा का टिकट मिला। रामलखन को 1957 में टिकट देने का वादा किया गया पर कांग्रेस ने वादा पूरा नहीं किया।
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