इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम की कार्यकुशलता और पारदर्शिता को लेकर कुछ समय से गंभीर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावों के बाद आरोप लगे थे कि कुछ सत्तारूढ़ पार्टियों को लाभ पहुंचाने के लिए ईवीएम से छेड़छाड़ की गई। इस विवाद के बीच कुछ देसी और विदेशी रिसर्चरों ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि इन मशीनों को हैक करके नतीजों को बदला जा सकता है। कुछ लोगों का तो यह भी कहना था कि दुनिया के कई देशों ने इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग बंद कर दिया है। दूसरी तरफ आयोग यह मानने को तैयार नहीं है कि इन मशीनों के साथ किसी तरह की कोई छेड़छाड़ की जा सकती है। इन विवादों ने उसे इन मशीनों की पारदर्शिता में सुधार के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। मतदाता द्वारा डाले गए वोट को प्रमाणित करने के लिए उसने एक नई टेक्नोलॉजी के परीक्षण का फैसला किया है। इस तकनीक के तहत इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर वोटिंग के बाद एक प्रिंट भी निकलेगा। राजनीतिक दलों ने इन मशीनों पर संतोष व्यक्त किया, लेकिन कईदलों ने सिस्टम को और ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए वीवीपीएटी यानी वोट वेरीफाएबल पेपर आडिट ट्रेल लागू करने का सुझाव दिया था। आयोग ने इस मामले को ईवीएम से संबंधित टेक्निकल एक्सपर्ट कमेटी को सौंपा। कमेटी ने विभिन्न राजनीतिक दलों, सिविल सोसायटी के संगठनों और ईवीएम से संबंधित मसलों पर आयोग के साथ कार्य करने वाले लोगों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया। कमेटी के निर्देश पर भारत इलेक्टॉनिक लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने वीवीपीएटी का एक प्रोटोटाइप बनाया। कमेटी ने इस सिस्टम को वास्तविक चुनावी परिस्थतियों में परखने की सिफारिश की है। आगामी 24 जुलाई को देश में एक अनोखा चुनाव होने जा रहा है, जो एकदम नकली होगा, लेकिन सारी प्रक्रियाएं और तामझाम वास्तविक चुनाव जैसे होंगे। इस चुनाव के लिए देश के पांच जिले चुने गए हैं। ये हैं पूर्वी दिल्ली, जैसलमेर (राजस्थान), लेह (जम्मू और कश्मीर), तिरुवनंतपुरम (केरल) और चेरापूंजी (मेघालय)। वीवीपीएटी सिस्टम की खास बात यह है कि इसमें अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम का बटन दबाने के बाद प्रिंटर से एक मतपत्र भी निकलेगा, जिसमें सीरियल नंबर, उम्मीदवार का नाम और उसका चिह्न अंकित होगा। चुनाव में दो तरह के सिस्टम आजमाए जाएंगे। एक सिस्टम में प्रिंटर को पूरी तरह से सीलबंद रखा गया है। इसमें मतदाता प्रिंटर की पारदर्शी खिड़की से छपे हुए मतपत्र को देखकर उसकी पुष्टि करेगा। उसे पांच सेकंड दिए जाएंगे। इसके पश्चात मतपत्र अपने आप कटकर सीलबंद डिब्बे में जमा हो जाएगा। दूसरे सिस्टम में प्रिंटर खुला रहेगा। छपा हुआ मतपत्र प्रिंटर के आगे रखी एक ट्रे में गिरेगा जिसे मतदाता उठाएगा व उसकी पुष्टि करेगा और वापस मोड़कर उसे एक सीलबंद डिब्बे में डाल देगा। तकनीकी अड़चनों से बचने के लिए हर सिस्टम में दो-दो प्रिंटर लगाए जाएंगे। मतगणना के दौरान ईवीएम द्वारा रिकॉर्ड किए गए मतों के अलावा प्रिंटर से निकले मतों की भी पूरी गणना की जाएगी। वैसे तो इन चुनावों में असली चुनावों जैसी प्रक्रिया अपनाई जाएगी, लेकिन मतदाताओं के मामले में छूट दी जाएगी। इसमें स्थानीय वोटरों के अलावा बाहरी लोग भी वोट दे सकते हैं। चुनाव के बाद वोटरों, चुनाव अधिकारियों और राजनीतिक दलों से फीडबैक लिया जाएगा। एक बड़ा सवाल यह है कि क्या इस नए सिस्टम से ईवीएम की पारदर्शिता बढे़गी? नए सिस्टम का डिमांस्ट्रेशन देखने के बाद वोटिंग की प्रक्रिया ऊपरी तौर पर ज्यादा साफ-सुथरी जरूर नजर आती है, लेकिन प्रिंटर से निकलने वाले वोटों की गिनती से परिणाम घोषित करने में विलंब होगा। यह एक तरह से मतगणना की पुरानी पद्धति की तरफ लौटने जैसा होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
Wednesday, June 29, 2011
ईवीएम की पारदर्शिता
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम की कार्यकुशलता और पारदर्शिता को लेकर कुछ समय से गंभीर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावों के बाद आरोप लगे थे कि कुछ सत्तारूढ़ पार्टियों को लाभ पहुंचाने के लिए ईवीएम से छेड़छाड़ की गई। इस विवाद के बीच कुछ देसी और विदेशी रिसर्चरों ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि इन मशीनों को हैक करके नतीजों को बदला जा सकता है। कुछ लोगों का तो यह भी कहना था कि दुनिया के कई देशों ने इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग बंद कर दिया है। दूसरी तरफ आयोग यह मानने को तैयार नहीं है कि इन मशीनों के साथ किसी तरह की कोई छेड़छाड़ की जा सकती है। इन विवादों ने उसे इन मशीनों की पारदर्शिता में सुधार के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। मतदाता द्वारा डाले गए वोट को प्रमाणित करने के लिए उसने एक नई टेक्नोलॉजी के परीक्षण का फैसला किया है। इस तकनीक के तहत इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर वोटिंग के बाद एक प्रिंट भी निकलेगा। राजनीतिक दलों ने इन मशीनों पर संतोष व्यक्त किया, लेकिन कईदलों ने सिस्टम को और ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए वीवीपीएटी यानी वोट वेरीफाएबल पेपर आडिट ट्रेल लागू करने का सुझाव दिया था। आयोग ने इस मामले को ईवीएम से संबंधित टेक्निकल एक्सपर्ट कमेटी को सौंपा। कमेटी ने विभिन्न राजनीतिक दलों, सिविल सोसायटी के संगठनों और ईवीएम से संबंधित मसलों पर आयोग के साथ कार्य करने वाले लोगों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया। कमेटी के निर्देश पर भारत इलेक्टॉनिक लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने वीवीपीएटी का एक प्रोटोटाइप बनाया। कमेटी ने इस सिस्टम को वास्तविक चुनावी परिस्थतियों में परखने की सिफारिश की है। आगामी 24 जुलाई को देश में एक अनोखा चुनाव होने जा रहा है, जो एकदम नकली होगा, लेकिन सारी प्रक्रियाएं और तामझाम वास्तविक चुनाव जैसे होंगे। इस चुनाव के लिए देश के पांच जिले चुने गए हैं। ये हैं पूर्वी दिल्ली, जैसलमेर (राजस्थान), लेह (जम्मू और कश्मीर), तिरुवनंतपुरम (केरल) और चेरापूंजी (मेघालय)। वीवीपीएटी सिस्टम की खास बात यह है कि इसमें अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम का बटन दबाने के बाद प्रिंटर से एक मतपत्र भी निकलेगा, जिसमें सीरियल नंबर, उम्मीदवार का नाम और उसका चिह्न अंकित होगा। चुनाव में दो तरह के सिस्टम आजमाए जाएंगे। एक सिस्टम में प्रिंटर को पूरी तरह से सीलबंद रखा गया है। इसमें मतदाता प्रिंटर की पारदर्शी खिड़की से छपे हुए मतपत्र को देखकर उसकी पुष्टि करेगा। उसे पांच सेकंड दिए जाएंगे। इसके पश्चात मतपत्र अपने आप कटकर सीलबंद डिब्बे में जमा हो जाएगा। दूसरे सिस्टम में प्रिंटर खुला रहेगा। छपा हुआ मतपत्र प्रिंटर के आगे रखी एक ट्रे में गिरेगा जिसे मतदाता उठाएगा व उसकी पुष्टि करेगा और वापस मोड़कर उसे एक सीलबंद डिब्बे में डाल देगा। तकनीकी अड़चनों से बचने के लिए हर सिस्टम में दो-दो प्रिंटर लगाए जाएंगे। मतगणना के दौरान ईवीएम द्वारा रिकॉर्ड किए गए मतों के अलावा प्रिंटर से निकले मतों की भी पूरी गणना की जाएगी। वैसे तो इन चुनावों में असली चुनावों जैसी प्रक्रिया अपनाई जाएगी, लेकिन मतदाताओं के मामले में छूट दी जाएगी। इसमें स्थानीय वोटरों के अलावा बाहरी लोग भी वोट दे सकते हैं। चुनाव के बाद वोटरों, चुनाव अधिकारियों और राजनीतिक दलों से फीडबैक लिया जाएगा। एक बड़ा सवाल यह है कि क्या इस नए सिस्टम से ईवीएम की पारदर्शिता बढे़गी? नए सिस्टम का डिमांस्ट्रेशन देखने के बाद वोटिंग की प्रक्रिया ऊपरी तौर पर ज्यादा साफ-सुथरी जरूर नजर आती है, लेकिन प्रिंटर से निकलने वाले वोटों की गिनती से परिणाम घोषित करने में विलंब होगा। यह एक तरह से मतगणना की पुरानी पद्धति की तरफ लौटने जैसा होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment